" बटुआ खाली है " एक रोज उनकी दरवाज़े पर, सप्तरंगी लाइट लगी थी, दरवाज़े पर कुछ रस्म के बाद, एक लड़का अंदर गया। बिना किसी रस्म के , कोई बाहर आया उनकी - जेहन से। उनकी भाभियों की मज़ाक, जो अक्सर वो सुनाया करती थी, अब भी जारी था- सुन कोई और रहा था। तभी "स्वीकरोमि सुखेन त्वां, गृहलक्ष्मीमहन्ततः" के श्लोक और चटख लाल सिंदूर। बात -बात पर रोने वाली अब सयानी हो गयी। सुबह फिर कार आई, इसबार एक रिश्तेदार अंदर गया, एक रात की रिवाज़ और - सहचरो भविष्यामि, पूणर्स्नेहः प्रदास्यते। सत्यता मम निष्ठा च, यस्याधारं भविष्यति।। का विश्वास ! उस शाम उनकी दरवाज़े पर, दो लोग गए थे। एक , एक होकर लौटा, दूसरा , अनेक होकर। #ऋषिकेश ©Rishikesh #alone