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कुछ यूं बह रहा हू, जिंदगी की मझधार में। ना मुस्कु

कुछ यूं बह रहा हू, जिंदगी की मझधार में।

ना मुस्कुराने की तमन्ना,

ना रोने की कोई वजह।

कोरा कागज नजर आता हैं,

पनपते हर विचार में।

कुछ यूं बह रहा हू, जिंदगी की मझधार में।।

©Tej Pratap
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