कौन जानता, कौन समझता उसे? किसके पास इतना वक्त था? इस पाखंडी दुनिया में,न जाने कौन उसका अपना था? जो फ़रिश्ता बन बैठा था हर किसी के लिए, वो खुद एक फ़रिश्ते की तलाश में था (poem in caption) ग़म की कश्ती मे सवार है वो, न जाने ज़िंदगी से क्या चाहता है वो? खिलखिलाता है पंछियों संग दिन के उजालों में, शाम ढलते ही,किसी फूल सा मुरझा जाता है वो अकेलेपन से यूँ लिपट के सो जाया करता है वो, जैसे हताशा के बिस्तर में दम घुटने का आदी हो