तारीफ़ में अब आपकी मैं क्या कहूं और कैसे कहूं, आपकी तारीफ़ करना भी चाहता हूं पर करूं भी कैसे। चाहत कितनी है आप से अब मैं आपको कैसे बताऊं, मरना भी चाहते है पर आपकी यादों को मैं भुलाऊं कैसे। यादों का एक कारवां साथ लिए जा रहा हूं, आपकी आदत को ही ज़िंदगी बनाने जा रहा हूं। मुक्कमल होगी भी या नहीं मेरी यह आशिकी, पर फ़िर भी मैं आपसे महोबबत आज़ करने जा रहा हूं। सहमी सी ख्वाहिश थी मेरी जो आज़ पूरी होने जा रही है, जब तुमने कुछ ऐसे इशारों में हमसे अपने प्यार का इज़हार किया। रहमत हुई खुदा की जो मुझे आप कुछ इस जनम में मिले है,