ज़रर कर गई मुझे दास्ताँ ए यारी मुझे फ़ना कर गई बेदवा बीमारी सर्द कर दी है मैंने ख़ुमारी ज़र्द हो गई है मेरी दीवारी *ज़र्द निस्तेज मुहाल है उन दिनों की चश्मेदारी मुझपे थी तब दीवानगी बलिहारी *बलिहारी कुर्बान जाना, निछावर होना मलाल पे रहेगी आशिक़ की गुज़ारी करवाते रहेंगे जबतक मेहमानदारी