नाज़नीन के नाजुक तन - बदन अंग-प्रत्यंग नज़्मों के अंतरे हुए नख से सीख तक किया तारीफ़ी असीम गज़ल शेरो-शायरी के दायरे हुए कुछ कहे संगमरमरी कुछ चाँदी सा बदन, रसिकों के लिये चटकारे हूए रंग आकार का असर कहाँ इश्क पर आशिकी तो इबादत के सहारे हुए ऐयार नज़र मक्कारी भरे हैं मगर जिस्म मनचलों के सेब संतरे हुए चाँद, सुराही, कदली थंब उपमा गुलबदन श्रृंगार रस पद अलंकारें हुए नाज़नीन के नाजुक........... #श्रृंगार_खिचड़ी