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जब चाह थी तब चाहा नहीं,कभी पलकों में बसाया नहीं।

जब चाह थी तब चाहा नहीं,कभी पलकों में बसाया नहीं।

कभी देखकर जिन्हें बढ़ जाती थी सांसों की गति और तन दहक जाता था।

अब तो कुन्द पड़ गई है,वही सांसे जो कभी देखकर बहक जाया करती थी

 अब तो इस निर्मोही तन में भी उनसे मिलकर  उफान,
 
और सांसो का बहाव तीव्र नहीं होता है।  
                          अमर 'अरमान' दिल की लगी है यारा कैसी लगी?
जब चाह थी तब चाहा नहीं,कभी पलकों में बसाया नहीं।

कभी देखकर जिन्हें बढ़ जाती थी सांसों की गति और तन दहक जाता था।

अब तो कुन्द पड़ गई है,वही सांसे जो कभी देखकर बहक जाया करती थी

 अब तो इस निर्मोही तन में भी उनसे मिलकर  उफान,
 
और सांसो का बहाव तीव्र नहीं होता है।  
                          अमर 'अरमान' दिल की लगी है यारा कैसी लगी?
amarsingh1840

Amar Singh

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