इस चाहत में दुश्वारियों का दौर, अब यूँ ही चलता रहेगा। मेरा दिल भी कितना पागल है, हर दर्द हँस कर सहेगा। इश्क़ है जब तक अधूरा मेरा, कोशिशों से ये ना थकेगा। मोहब्बत के माक़ूल माहौल में, खुलकर सबकुछ कहेगा। इक़रार-ए-मोहब्बत कर ली, अब इजहार का इंतजार है। मुक़म्मल दास्ताँ पूरी करने, इक पल भी अब न रुकेगा। दूरियाँ थी जब दिलों के दरमियाँ, कैसे महसूस करते वो। जो दिल तक न पहुँची थी, वो बात अब ये दिल कहेगा। मजबूरियों से था वास्ता दिल का, हमको खूब रुलाया है। बहुत हुआ ये दौर-ए-मोहब्बत, अब दिल न कहीं झुकेगा। गर चाहत थी मक़बूल मेरी, तो फिर क्यूँ ये शरारत हुई। बेइंतेहा, बेशुमार मोहब्बत, अब कौन किसी से करेगा। ♥️ Challenge-697 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।