उजाले भी,बहुत मरते ,निगाहों की बिनाई में,, कमाते जब मजा आता,उड़ाने का कमाई में,, मेरा घर भी,उजाड़ा जा,रहा था मेरे पीछे से,, नजर आता,है सबको चाँद दूजो की लुगाई में!! मुक्कमल कर,अधूरा छोड़ दिया मैने गजलो को, अभी सीखे,अभी आनंद,लगा आने रसाई में!! मुझे खोने से बच जाता मगर रोका नही उसने,, बिखर जाते है रजवाड़े,भाईयो की लड़ाई में!! कबीले की,सुलगती आ,ग में सबको,बचाना था,, जला लाया मैं अपने हाथ लोगो की भलाई में!! बनाने में लगा उसको,बहुत सा वक्त वहां पर घर,, समय कितना लगेगा अब,हवा को भी तबाही में!! कभी तो हिचकिया भी बाज आएगी बता अपनी,, कभी वो याद करना छोड़ देगी जब तन्हाई में!! 1222,,1222,,1222,,1222 ZiKr Ek @√ #विपिन