मातृत्व : एक आकांक्षा :- प्रेम का शाश्वत स्वरूप जहां वास्तव में होते हैं दो जिस्म और एक जान ( अनुशीर्षक ) किसी ने मुझसे कहा था 7वें माह में अगर बच्चा हो जाये तो वह बच जाता है, और इन सात माह को पुरे होने में मात्र केवल चार दिन थे, डॉक्टर्स का कहना था तुम्हें अच्छे से ब्लड सप्लाई नहीं जा रहा, जिससे तुम्हारी ग्रोथ भी नहीं हो पा रही , आर एफ टी कराने पर पता चला प्रोटीन्स काफ़ी बढ़ गए हैं और इससे मेरी किडनी प्रभावित हो सकती है, जल्द ही अगर मां और बच्चे को बचाना है तो इमरजेंसी में मदर को डिलीवर करना होगा,! अब Google करने पर मुझे पता चला कि मैं प्रेक्लेम्पसाइआ / एकलम्पिसाइआ का शिकार हूँ, आम भाषा में कहूँ तो इस में प्रेग्नेंसी के 20वें हफ्ते के बाद अबनॉर्मली मां का रक्तचाप बढ़ जाता है और यह मां और शिशु दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है, पढ़ी लिखी थी तो अपनी हर रिपोर्ट खुद से ही अच्छे से जाँचा करती थी, मानसिक तौर और शारीरिक तौर पर मैं बेहद ज्यादा डिस्टर्ब हो चुकी थी, डिलीवर किसी ऐसे हॉस्पिटल में किया जाना था जहां बच्चे को भी अच्छा उपचार मिल पाता, इस स्थिति में सबसे ज्यादा डर रहता उच्च रक्तचाप के कारण दौरे पड़ने का, और मैं अपने बच्चे को खोना नहीं चाहती थी, डॉक्टर्स के कहे अनुसार मैं बायां पासा लेकर लेटे रहा करती थी, 7 वें माह में बच्चा गर्भ में हलचल करने लग जाता है, और मेरा पूरा ध्यान हर वक़्त उसकी हलचल पर रहा करता था, थोड़ी देर के लिए भी लगे के अब बच्चा काफ़ी देर से न हिला तो मैं बेचैन हो जाती थी, मेरी डॉक्टर बोहत अच्छी थी, मेरा अच्छे से ख्याल रखती थी, उनका कहना था के कुकू तुम्हारा बेबी बोहत एक्टिव है बस हाथ भर लगाने से उसकी धड़कन स्पष्ट सुनाई देती है, ये भी एक खतरे की बात है जब बेबी की धड़कन ही न सुनाई दे, 7 नबर कमरे वाली एक महिला ने उसके बेबी को ऐसे ही खो दिया था,