दुख का पहाड़ है आन पड़ा क्यों दरिद्र दुखियारों पर, आहत हो रहा है मन रो रहा मां का दामन। मदद की जूठी आस दिलाए, साहब सारे बैठे मौन। पैदल ही चल पड़े नापने मीलों की दूरी,मजदूर बेचारे। बातें तो करते लोग सहस्त्रों, पर उनका दर्द मिटाए कौन? आंसू उनके पोछे कौन? अनहोनी को रोके कौन? आज एक और हृदय विदारक दुर्घटना में बीस से अधिक मज़दूरों के प्राणों की क्षति हुई। कभी-कभी जीवन की अनिश्चितता मन को ग्रसित कर देती है। अनहोनी की यह मार अभावग्रस्त सामान्य नागरिकों पर ही क्यों पड़ती है? #अनहोनी #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi