है जन्नत यहाँ तो दोजख़ भी वहीं है है इशक़ खुदा तो शैतान भी वही है इस इशक मे कभी पाँव जमीन पे नही लगते , दिल बस में नही रहता सबसे ज्यादा खुश भी यह दिल ही होता है है तो रोता भी यही है इस से बद्तर कुछ नही हो सकता इन्सान खुद को पाकर खोता भी वहीं है, आसान नहीं मन्ज़िल इसकी पंख लगते है खोखले इरादों को,बचकाने वादों को झूठी उम्मीदों के, जब कटते है पंख इसके इन्सान जमीं पे आ के गिरता है उठता है लेकिन फिर लडखडा़कर गिर जाता है , उड़ने के खव्बाव देखता है फिर चलने के लायक भी नही रहता, झूठे सपने होते हैं इस इशक़ में कुछ पल की खुशियाँ न जाने सच्ची कि झूठी, मिल जाए अगर तो जिन्दगी है न मिले तो इससे बद्तर सज़ा भी अौर कोई नहीं है, है जन्नत यहाँ तो दोजख़ भी वहीं है है इशक़ खुदा तो शैतान भी वही है। है जन्नत यहाँ तो दोजख़ भी वहीं है है इशक़ खुदा तो शैतान भी वही है इस इशक मे कभी पाँव जमीन पे नही लगते , दिल बस में नही रहता सबसे ज्यादा खुश भी यह दिल ही होता है है तो रोता भी यही है इस से बद्तर कुछ नही हो सकता