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|| श्री हरि: || 66 - अपनी धुन में 'कनूं! कहां जा

|| श्री हरि: ||
66 - अपनी धुन में

'कनूं! कहां जा रहा है तू?' यह श्याम बहुत चपल है। इसे यदि दाऊ सम्हालता न रहे तो पता नहीं क्या कब करे यह। अब स्नान करके भीगे वस्त्रों ही वन में भागा जा रहा है। ऐसी क्या शीघ्रता है? गायें तो सब यहीं हैं और सखा भी यहीं हैं। कोई विचित्र घटना या अद्भुत वस्तुओं की क्या कमी है। इसने कोई पक्षी, कोई पशु, कोई पुष्प देख लिया और दोड़ पड़ा।

'लौट आ। पहले वस्त्र पहिन ले।' दाऊ पुकार रहा है। वह न पुकारे तो उसका छोटा भाई कितनी देर में लौटेगा, इसका कुछ ठीक ठिकाना नहीं।

'दादा, मैं आया अभी।' भीगी अलकों से बूंदे झर रही है। शरीर अभी पोंछा तक नहीं गया है। दोड़ते-दोड़ते ही पीछे मुखकर मोहन ने हाथ उठाकर हंसते हुए कहा और फिर आगे दोड़ गया।
anilsiwach0057

Anil Siwach

New Creator

|| श्री हरि: || 66 - अपनी धुन में 'कनूं! कहां जा रहा है तू?' यह श्याम बहुत चपल है। इसे यदि दाऊ सम्हालता न रहे तो पता नहीं क्या कब करे यह। अब स्नान करके भीगे वस्त्रों ही वन में भागा जा रहा है। ऐसी क्या शीघ्रता है? गायें तो सब यहीं हैं और सखा भी यहीं हैं। कोई विचित्र घटना या अद्भुत वस्तुओं की क्या कमी है। इसने कोई पक्षी, कोई पशु, कोई पुष्प देख लिया और दोड़ पड़ा। 'लौट आ। पहले वस्त्र पहिन ले।' दाऊ पुकार रहा है। वह न पुकारे तो उसका छोटा भाई कितनी देर में लौटेगा, इसका कुछ ठीक ठिकाना नहीं। 'दादा, मैं आया अभी।' भीगी अलकों से बूंदे झर रही है। शरीर अभी पोंछा तक नहीं गया है। दोड़ते-दोड़ते ही पीछे मुखकर मोहन ने हाथ उठाकर हंसते हुए कहा और फिर आगे दोड़ गया। #Books

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