पन्थ विकट है, अन्त निकट है, जाने का अब, कटा टिकट है, जीवन है छल, मृत्यु कपट है, रह-रह उठती, हृदय लपट है, मन में रोष, भृकुटि बंकट है, अब उज्जवल है, काल विगत है, चल थाने में, लिखा रपट है, भले-बुरे को, डाँट डपट है, 'गुंजन' मन में, उठा-पटक है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra #पंथ विकट है#