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1290# ग़र तुमसे ना मिलते ग़र तुमसे ना मिलते तो,

1290# ग़र तुमसे ना मिलते

ग़र तुमसे  ना  मिलते तो, ये राज़ रह जाता
दब जाता  जज़्बात और एहसास रह जाता
तमन्नाओं के सहर को, नहीं मिलती मंज़िल
तुम बिन जीवन में, सुन्दर आगाज़ रह जाता
राह  ए  ज़िंदगी, कितनी  आसान हो  गई है 
ज़िंदगी का सफ़र कितना सुनसान रह जाता 
हर रोज़ सहर कितनी मदहोश करती है अब 
तुम बिन ये सहर भी शायद गुमनाम रह जाता 
आकर मेरी ज़िंदगी को मुकम्मल किया तुमने 
ज़िंदगी में न जाने कितने, भटकाव रह जाता 
सारे निराला ख़्वाब मेरे, मुक्कमल हो गए हैं
वर्ना तुम  बिन सारे  ख़्वाब, ख़्वाब रह जाता

सहर... सुब्ह, सुबह, सवेरा 

#1290

©Sanjay Ni_ra_la
  ग़र तुमसे ना मिलते

ग़र तुमसे ना मिलते #लव

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