मुझको पता नहीं यह कैसा सुरूर है? ख़फ़ा हम हैं या रूठे रूठे से हुजूर हैं। तन्हाई में तलाशने लगे हैं ठौर कोई। लगता है हमने कुछ खोया ज़ुरूर है। शिकायत करने लगे अपने आप से। आगे बढ़ जाओ वह थोड़ा ही दूर है। इश्क़ और जंग में सब जायज़ हुआ। लेकिन ये न हो कि मोहब्ब्त फ़ितूर है। रूह का लिबास जैसे ज़िस्म होता है। लिबाज़ भी तो 'पंछी' ऐसा दस्तूर है। 🌹 मुझको पता नहीं यह कैसा सुरूर है? ख़फ़ा हम हैं या रूठे रूठे से हुजूर हैं। तन्हाई में तलाशने लगे हैं ठौर कोई। लगता है हमने कुछ खोया ज़ुरूर है। शिकायत करने लगे अपने आप से।