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उड़ी पतंग अपने जीवन की, आकांक्षाओं के उन्मुक्त ग

उड़ी पतंग अपने  जीवन की, आकांक्षाओं के  उन्मुक्त गगन में,
मन की डोर से मैं बँधा, कभी लहराऊँ  बलखाऊँ मस्त पवन में।

तप त्याग  प्रेम शांति की  मांझे से, मन की डोर मजबूत बनाया,
मन विचलित हुआ पेंच लड़ाया, पुनः आस्तित्व जमीं पर आया।  लोहड़ी के इस पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 🎈🎈🪁🪁🪁🪁
🌝प्रतियोगिता-111🌝
 
✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️

🪁"उड़ी पतंग"🪁

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या
उड़ी पतंग अपने  जीवन की, आकांक्षाओं के  उन्मुक्त गगन में,
मन की डोर से मैं बँधा, कभी लहराऊँ  बलखाऊँ मस्त पवन में।

तप त्याग  प्रेम शांति की  मांझे से, मन की डोर मजबूत बनाया,
मन विचलित हुआ पेंच लड़ाया, पुनः आस्तित्व जमीं पर आया।  लोहड़ी के इस पावन पर्व पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 🎈🎈🪁🪁🪁🪁
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