बिखर जानी थीं सब यादें ख्वाबों को टूट जाना था नहीं मिलनी थी राहों को मन्ज़िलें कदमों को पत्थरों से टकराना था टूट जाना था लम्हा लम्हा और फिर भी मुस्कुराना था प्यास की सूरत नहीं बदलनी थी सो बादलों को यूंही गुज़र जाना था रहगुज़र जो तुम तक जाती थी चलते चलते उसे छूट जाना था कितने हस्सास थे ख्वाब मेरे उन्हें ख्वाब ही रह जाना था नहीं रखनी थी कोई उम्मीद किसी से रख ली तो फिर क्या जताना था. #smilewithtears