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सर्द हवाओं ने ज़ज्बात जमा रक्खे हैं , पिघला दो सुन

सर्द हवाओं ने ज़ज्बात जमा रक्खे हैं ,
पिघला दो सुना के दर्द का नगमा कोई ,
लगी हैं फांस कबसे दिल, न निकले है ,
निगाहे शमशीर न चाहे है तमगा कोई ।। 

बक्स भर कर रखे हैं ख्वाब जाने कितने,
हर रात इजाफा करती है इस कमाई में ,
जाने जिंदगी के सफर में ग़ज़ल हो न हो ,
हम तो खुश हैं ढलती शाम की रुबाई में ।। 

न कोई रंज न अफ़सोस ना ही उदासी है ,
दिल तो भर आया, ये मुई आंख प्यासी है ,
मुकदमा लगता है चलेगा अदालत उनकी,
हमारी फकीरी में छटपटाहट सियासी है ।।

©Dinesh Paliwal
  #SardHawa