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#इक कविता तुम्हारे नाम मेरे एहसास अक्सर मेरी कविता

#इक कविता तुम्हारे नाम
मेरे एहसास अक्सर
मेरी कविता पढ़कर कहते हैं के जानती हो मेरा दिल क्या चाहता है ?
इन कविताओं से,कहानियों से दूर ले जाऊँ तुम्हें सदा के लिए
अपनी ख्यालों की दुनिया में जहाँ तुम्हारे और मेरे नहीं हमारे एहसास महकते हो
हर ओर ले जाना चाहता हूँ तुम्हें कहीं दूर क्षितिज के उस पास
जहाँ सफेद जमीं को चूमता हैं स्याह आसमां
भरना चाहता हूँ ख़ुशनुमा पल तुम्हारी तन्हाइयों में
मेरी कुछ भावनाओं से भरी ये कवितायें
दरअसल वो कश्तियाँ थी जिनमें बैठकर ना जाने
कितनी बार तुम्हें तकता रहता मैं
ख़ामोश मुद्दतो से बस तुम्हारे ही ख़्वाब देखता रहा मैं
वो रातें भी क्या रातें रहीं जिनमें कांपती रहीं मेरी रूह भी तेरे दर्द से
और इन सब से अंजान अपने कलम को दर्द की स्याही में
डुबोकर लिखते रहे तुम अपनी कथाएँ व्यथाएँ
हाँ....ले जाना चाहता हूँ तुम्हें जहाँ इश्क़ की खुशबु से
सराबोर हो सारा आलम और बिखरे हो हर तरफ
हर श्रृंगार के फूल जिनपे चलकर तुम्हारे कोमल पदचाप के निशान
बने मेरे हृदय के सुनी पगडंडियों पे
मगर सच तो यही हैं प्रिये के कल्पना की शिखर पे बिठाकर तुम्हें
ले जाऊं दर्द-ओ-गम की दुनिया से दूर डूबकर और
फिर तुम्हारी चाहत और तुम्हारे
प्रेम में शब्दों के बाजुओं को थाम लिखूं एक कविता
"सिर्फ तुम्हारे नाम"
@शब्दभेदी किशोर

©शब्दवेडा किशोर #मैं_और_मेरे_एहसास
#इक कविता तुम्हारे नाम
मेरे एहसास अक्सर
मेरी कविता पढ़कर कहते हैं के जानती हो मेरा दिल क्या चाहता है ?
इन कविताओं से,कहानियों से दूर ले जाऊँ तुम्हें सदा के लिए
अपनी ख्यालों की दुनिया में जहाँ तुम्हारे और मेरे नहीं हमारे एहसास महकते हो
हर ओर ले जाना चाहता हूँ तुम्हें कहीं दूर क्षितिज के उस पास
जहाँ सफेद जमीं को चूमता हैं स्याह आसमां
भरना चाहता हूँ ख़ुशनुमा पल तुम्हारी तन्हाइयों में
मेरी कुछ भावनाओं से भरी ये कवितायें
दरअसल वो कश्तियाँ थी जिनमें बैठकर ना जाने
कितनी बार तुम्हें तकता रहता मैं
ख़ामोश मुद्दतो से बस तुम्हारे ही ख़्वाब देखता रहा मैं
वो रातें भी क्या रातें रहीं जिनमें कांपती रहीं मेरी रूह भी तेरे दर्द से
और इन सब से अंजान अपने कलम को दर्द की स्याही में
डुबोकर लिखते रहे तुम अपनी कथाएँ व्यथाएँ
हाँ....ले जाना चाहता हूँ तुम्हें जहाँ इश्क़ की खुशबु से
सराबोर हो सारा आलम और बिखरे हो हर तरफ
हर श्रृंगार के फूल जिनपे चलकर तुम्हारे कोमल पदचाप के निशान
बने मेरे हृदय के सुनी पगडंडियों पे
मगर सच तो यही हैं प्रिये के कल्पना की शिखर पे बिठाकर तुम्हें
ले जाऊं दर्द-ओ-गम की दुनिया से दूर डूबकर और
फिर तुम्हारी चाहत और तुम्हारे
प्रेम में शब्दों के बाजुओं को थाम लिखूं एक कविता
"सिर्फ तुम्हारे नाम"
@शब्दभेदी किशोर

©शब्दवेडा किशोर #मैं_और_मेरे_एहसास