विश्वास और उम्मीद का दामन, जुड़ा था जो परछाईं जैसे, शाम आते आते, कम होता गया धीरे धीरे, एक फाँसला बढ़ता गया, शाम ढलते ही, समय हो चुका था, परछाईं के टूटने का शरीर से, अब इंतेज़ार है, सुबह एक नयी किरण का, एक नए विश्वास, उम्मीद का, एक नए उत्साह, नये संचार का, परछाईं का शरीर से जुड़ जाने का ! विश्वास और उम्मीद का दामन, जुड़ा था जो परछाईं जैसे, शाम आते आते, कम होता गया धीरे धीरे, एक फाँसला बढ़ता गया, शाम ढलते ही, समय हो चुका था, परछाईं के टूटने का शरीर से,