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रुई के फाहे जैसे बिखर रहे हों और लिख रहे हों ख़्याल

रुई के फाहे जैसे बिखर रहे हों
और लिख रहे हों ख़्याल
आसमान में बसे किसी शायर का
मैं पढ़ रहा हूँ उसकी लिखावट
बैठा ज़मीन पर
मैं बुन रहा हूँ ख़्वाब
 उसकी नूरानी आहट का

सच है वो कहते हैं के
बादल क़ुदरत के क़िताब होते हैं
जहाँ लिखता है क़लमा
बारिश की स्याह क़लम से आफ़ताब
और हवाएं किसी तिलिस्मी पेंट ब्रश से
जैसे बुनती हैं रोज़ तस्वीर
जो किसी डाकिये से पहुंचाते हैं
मुहब्बत के ख़त प्रेमियों के बीच
जहाँ कालिदास के मेघदूत
तानसेन के मल्हार में 
पिघल जाया करते हैं

बादल रेगिस्तान का मरहम ,
सन्नाटे की दवा और
इंसानी रूह का इलाज भी होते हैं

~अंकुर #रुई के फाहे जैसे बिखर रहे हों
और लिख रहे हों ख़्याल
आसमान में बसे किसी शायर का
मैं पढ़ रहा हूँ उसकी लिखावट
बैठा ज़मीन पर
मैं बुन रहा हूँ ख़्वाब उसकी नूरानी आहट का

सच है वो कहते हैं के
रुई के फाहे जैसे बिखर रहे हों
और लिख रहे हों ख़्याल
आसमान में बसे किसी शायर का
मैं पढ़ रहा हूँ उसकी लिखावट
बैठा ज़मीन पर
मैं बुन रहा हूँ ख़्वाब
 उसकी नूरानी आहट का

सच है वो कहते हैं के
बादल क़ुदरत के क़िताब होते हैं
जहाँ लिखता है क़लमा
बारिश की स्याह क़लम से आफ़ताब
और हवाएं किसी तिलिस्मी पेंट ब्रश से
जैसे बुनती हैं रोज़ तस्वीर
जो किसी डाकिये से पहुंचाते हैं
मुहब्बत के ख़त प्रेमियों के बीच
जहाँ कालिदास के मेघदूत
तानसेन के मल्हार में 
पिघल जाया करते हैं

बादल रेगिस्तान का मरहम ,
सन्नाटे की दवा और
इंसानी रूह का इलाज भी होते हैं

~अंकुर #रुई के फाहे जैसे बिखर रहे हों
और लिख रहे हों ख़्याल
आसमान में बसे किसी शायर का
मैं पढ़ रहा हूँ उसकी लिखावट
बैठा ज़मीन पर
मैं बुन रहा हूँ ख़्वाब उसकी नूरानी आहट का

सच है वो कहते हैं के