अभी भी वीर ने हार न मानी है, करते रहे प्रहार दुराचारी मिलकर उस बालक पर, फिर भी उसने चक्रव्यूह तोड़ने को ही ठानी है, उन निर्दयीयों को दया न उस पर आ रही थी, युद्धभूमि अब चन्द्रपुत्र के रक्त से, लाल रक्त भूमि हो जा रही थी, वह उठा फिर भी ललकार के, रथ का पहिया फेका है कौरव सेना पर, फिर भगदड़ मच चुकी थी दुष्टों के सेना पर, तभी चालाकी मे एक साथ, वह सभी अभिमन्यु पर तुट पड़ें हैं, अब अभिमन्यु अपनों से दूर हो चलें हैं, युद्धिष्ठिर खुद को कोसते और, अर्जुन से खुद का वध करने को कह रहें हैं, तभी बोले हैं मोहन, मत पश्चताएँ बड़े भैया, वीरता का उदाहरण होगा अभिमन्यु, युगो-युगो तक उसका नाम रहेगा, हर पिता के लिए एक ऐसा ही आस रहेगा, हर माँ के गर्भ में अभिमन्यु का ही वास रहेगा, बलिदान दिया है उसने जो मात के लिए, वह हर आने वाले पीढ़ी में एक उत्तमाश रहेगा....!! -Sp"रूपचन्द्र" खण्डकाव्य:चन्द्रपुत्र की तेजशीलता Part-4