विलंभ अभी हुआ नहीं, लक्ष्य की प्राप्ति को उठा पग बना डगर, विजय के एहसास को कल मिली पराजय, क्यूं बनी है व्यथा आज को कर फिर एक कोशिश, विजय उन्माद को । जीव जीवित कर्म से, निश्छल मन विश्वास से पाप की तो व्यथा निराली, जीता सिर्फ स्वार्थ को मन में रख लक्ष्य अडिग, सरयू भी निगलती पहाड़ को