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झूठी हमदर्दियाँ दिखा कर, मन का भेद लेने वाले..!

 झूठी हमदर्दियाँ दिखा कर,
मन का भेद लेने वाले..!

चेहरे पे मुखौटे रखते,
सीरत के हैं काले..!

ख़ुद को ऊँचा उठा कर नज़रों में,
करते रहे घोटाले..!

बच कर रहना ज़हरीले हैं ये,
इन्सां दो मुँह वाले..!

ख़ुद का भला औरों का बुरा,
इज्जत भरी महफ़िल में उछाले..!

भेड़ की भीड़ में भेड़िया जैसे,
छीने मुख से निवाले..!

अँधेरे ही भाते हैं इनको,
न चाहते सुख शान्ति के उजाले..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #Apocalypse #jhuthihumdardiyan