वह मृग कस्तूरी मैं उसकी क्या कहूँ व्यथा अब विरह की बादल बरसे उष्णता हरते नहीं प्रेम बोल भी अब कर्ण तृप्त करते नहीं विचलित अलसायी जीवन दोपहरी उषा संध्या मन हरते नहीं गहन रात्रि भयभीत करती नेत्र निद्रा बिन अब काजल प्रेम करते नहीं श्वास उच्छवास् आह बन अब प्रिय नाम जप थकते नहीं कैसे कहूँ व्यथा विरह की पलछिन बाट जोहते आँख मूँद तनिक रहते नहीं! 🌹 #mनिर्झरा ©️®️ #वियोग #वियोग_शृंगार_रस #hindipoetry #yqlove #yqdidi #bestyqhindiquotes