बहुतेरे कदमों के बीच मन ढल गया, मासूमियत को भीतर का हैवान निगल गया, जो था मैं कभी किसी पैमाने के तल पर, आज परिस्थितियों का समंदर में पिघल गया, वो मुस्कुराहट अब झूठ का हिस्सा लगती है, लगता है वक्त फिर से कोई बाजी चल गया, एक झूठ तब भी था अब भी है, बस अब उस झूठ से मेरा सच निकल गया, अब सच को सबने समझ लिया है, बेमाने बात पर अब तारीफें खिलती है, सबमें मैं मिल गया पर मुझमें मैं ही नही, अब मुझको मेरी कमी खलती है। मेरी जीत कभी खुद की जीत से परे थी, आज उसी जीत से मैं सब हार कर बैठा हूं, सोच समय की गति से आगे बढ़ने की थी, आज गति में खुद को सरेआम लपेटा हूं, मशवरे बहुत है दूजों के दर पर, खुद के लिए अपनी चादर ही समेटा हूं, शिद्दत से शमशान में देखा है चिताओं पर जलते, उसी एक चीता पर मैं खुद ही लेटा हूं, मैने खुद के जनाजे को अपने कंधे पर लिया है, मेरी लकीरें मेरे मिटते ख़ाख को मलती है, गैरों के बीच मेरा कोई अक्स मुझे दिखा नही, अब मुझको मेरी कमी खलती है।— % & जाने क्या बात हुई है ऐसी, मुझको मेरी कमी खलती है... #मेरीकमी #collab #yqdidi #yourquoteandmine Collaborating with YourQuote Didi and #yqbhaskar