बारिशों की कसक कहाँ? फूलों में महक कहाँ? आईना है बेखबर, रूप का ये अक्स कहाँ? मंजिलों को छूने वाली रेंगती सड़क कहाँ? सांझ हो चुकी है अब भोर का सबब कहाँ? ख्वाब क्या है, क्या पता? ख्वाब भी बचे कहाँ! जिंदगी है बेखबर, ऐ जिंदगी तू है कहाँ? #कालजयी_श्रुति #जिंदगी