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कुछ ख़्वाब अधूरे से मेरी नींद उड़ा ले जाते हैं। कमज़

कुछ ख़्वाब अधूरे से मेरी  नींद उड़ा ले जाते हैं।
कमज़र्फ ख़यालों से मेरी नीड़ हिला के जाते हैं।
(01)
फिर जीवन में उनसे ही आशा का संचार हुआ!
जो थमा नहीं रस्तेभर में उसका ही संसार हुआ।
(02) कुछ ख़्वाब अधूरे से मेरी  नींद उड़ा ले जाते हैं।
कमज़र्फ ख़यालों से मेरी नीड़ हिला के जाते हैं।
(01)
फिर जीवन में उनसे ही आशा का संचार हुआ!
जो थमा नहीं रस्तेभर में उसका ही संसार हुआ।
(02)

©दिव्यांशु पाठक
कुछ ख़्वाब अधूरे से मेरी  नींद उड़ा ले जाते हैं।
कमज़र्फ ख़यालों से मेरी नीड़ हिला के जाते हैं।
(01)
फिर जीवन में उनसे ही आशा का संचार हुआ!
जो थमा नहीं रस्तेभर में उसका ही संसार हुआ।
(02) कुछ ख़्वाब अधूरे से मेरी  नींद उड़ा ले जाते हैं।
कमज़र्फ ख़यालों से मेरी नीड़ हिला के जाते हैं।
(01)
फिर जीवन में उनसे ही आशा का संचार हुआ!
जो थमा नहीं रस्तेभर में उसका ही संसार हुआ।
(02)

©दिव्यांशु पाठक