‘ प्रिंछी ‘ एक परी की कहानी परियों की थी एक शहज़ादी , नाम था उसका ‘ प्रिंछी ‘ ! खुशियों का था आशियाना उसका , ग़मों से थी वो अनजानी ! खिलते फूलों-सी मुस्कान थी उसकी , महकती थी जिससे बगिया सुहानी ! हँसते-खेलते बीत रही थी उसकी , खुशियों से भरी ज़िंदगानी ! एक दिन अनजाने में ‘ प्रिंछी ‘ , आसमां से इस धरती पर आई ! देख इस दुनिया की खुबसूरती , पहले तो वो अति हर्षाई , पर देख इंसान की दशा , उस परी की आँख भर आई ! भूखे-बेबस लोगों की तृष्णा उसे रास ना आई ! दुःख से अनजान उस परी के मन में , एकदम मायूसी छाई ! उसने सोचा – ये कैसी है दुनिया , जहाँ ऊंच-नीच की है खाई ! रिश्तों की उधेड़बुन में , यहाँ लड़ते है भाई-भाई ! ईर्ष्या-द्वेष की भावना यहाँ , इंसान के मन में है समाई ! धर्मं और मज़हब के नाम पर , यहाँ होती है बस लडाई ! मासूम गरीब बच्चों ने यहाँ , उतरन में हर खुशी है पाई ! ज़िन्दगी की हर खुशी पर इनकी , ग़मों की परछाई है छाई ! ये कैसी है दुनिया , ये कैसे है लोग , कैसी है ये पीर पराई , देख इस दुनिया की हालत , ‘ प्रिंछी ‘ कुछ समझ ना पाई ! जब इंसानों की इस दुनिया से , परियों के देश वो लौट आई ! तब केवल एक ही बात , उसके मन में है आई ! काश, इंसानों की दुनिया भी , हम परियों-सी होती ! न होता ऊंच-नीच का भेद , न होता कोई जातिवाद , न होती भूख और बेबसी , न होता कोई विकार ! मर्म देख इस दुनिया का , उस नन्ही परी की आँख भर आई ! जो अब तक थी ग़मों से अनजानी , वो आज उसकी परिभाषा है जान पाई ! – सोनल पंवार ©Sonal Panwar " प्रिंछी-एक परी की कहानी " #AugustCreator