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समय की सबपर पड़ती थपेड़ जिससे बचता ना आदमी, ना पेड़।

समय की सबपर पड़ती थपेड़
जिससे बचता ना आदमी, ना पेड़।

कली खिली, फिर बनी फूल
समय बीता तो बन गई धूल
शिशु, युवा हुआ, जाने कब हुआ अधेड़।
समय की सबपर पड़ती थपेड़।

जो वर्तमान था, वह इतिहास हुआ
यहाँ सदा कब किसी का निवास हुआ।
समय सबकी परत देता उधेड़।
समय की सबपर पड़ती थपेड़।

©Kamlesh Kandpal
  #Smay