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#कैसी_हो_हमारी_मनःस्थिति? कहना न होगा कि हमारी मह

#कैसी_हो_हमारी_मनःस्थिति?

कहना न होगा कि हमारी महानता और निकृष्टता हमारी मनःस्थिति पर निर्भर है। जिसके विचार ओछे, स्वार्थी और संकीर्ण है, उसकी गतिविधियां घृणित स्तर की होंगी, फलस्वरूप उसका स्तर नर - पशुओं एवं नर पिशाचों जैसा बन जायेगा। इसके विपरित जिसके विचार ऊंचे, उत्कृष्ट, उदात्त हैं, सद्भावना और सज्जनता के आदर्श जिस मस्तिष्क में जम गए हैं, उनके समस्त क्रिया कलापों में शालीनता एवं महानता की झांकी ही मिलेगी। वह स्वयं उस कर्तव्य से संतुष्ट रह सके। ऐसे व्यक्ति आजीवन अपने लिए आनंद उत्पन्न करते और दूसरों के लिए उल्लास बिखरते ही देखे जाते हैं।

आज हम व्यक्ति को अनेक व्यथा वेदनाओ में डूबा हुआ, अनेक समस्याओं में उलझा हुआ पाते हैं। ऐसा देखने को मिल ही जाता है कि मनुष्य अपने पास जो है उससे खुश होने के बजाय दूसरो की खुशी, संपन्नता देखकर ज्यादा आहत है। सर्वत्र अशांति, आशंका, आपसी वैमनस्य और असंतोष का जो वातावरण दिखता है उसका एक मात्र कारण है मानवीय दुर्बूद्धि का बढ़ जाना और उसका दुष्प्रवृतियों की ओर मुड़ जाना। 

हमें वास्तविकता समझनी चाहिए और जनमानस में विवेकशीलता एवं उत्कृष्ट आदर्शवादिता का बीजारोपण करने के लिए प्रबल प्रयास करना चाहिए। अपने बच्चों को सुसंस्कृत बनाने का प्रयत्न करना चाहिए, हमे सदैव प्रयत्न करना चाहिए कि वो सन्मार्ग पर चले, सद् विचार उनमें भरी होनी चाहिए। राजनैतिक क्रान्ति के बाद अब सबसे बड़ी और पहली आवश्यकता विचार क्रांति की है। उसके बिना प्रगति के सारे प्रयत्न दिवा स्वप्न मात्र बनकर रह जायेंगे।
                                            🙏🙏🙏🙏

©Surjeet kumar #Holi
#कैसी_हो_हमारी_मनःस्थिति?

कहना न होगा कि हमारी महानता और निकृष्टता हमारी मनःस्थिति पर निर्भर है। जिसके विचार ओछे, स्वार्थी और संकीर्ण है, उसकी गतिविधियां घृणित स्तर की होंगी, फलस्वरूप उसका स्तर नर - पशुओं एवं नर पिशाचों जैसा बन जायेगा। इसके विपरित जिसके विचार ऊंचे, उत्कृष्ट, उदात्त हैं, सद्भावना और सज्जनता के आदर्श जिस मस्तिष्क में जम गए हैं, उनके समस्त क्रिया कलापों में शालीनता एवं महानता की झांकी ही मिलेगी। वह स्वयं उस कर्तव्य से संतुष्ट रह सके। ऐसे व्यक्ति आजीवन अपने लिए आनंद उत्पन्न करते और दूसरों के लिए उल्लास बिखरते ही देखे जाते हैं।

आज हम व्यक्ति को अनेक व्यथा वेदनाओ में डूबा हुआ, अनेक समस्याओं में उलझा हुआ पाते हैं। ऐसा देखने को मिल ही जाता है कि मनुष्य अपने पास जो है उससे खुश होने के बजाय दूसरो की खुशी, संपन्नता देखकर ज्यादा आहत है। सर्वत्र अशांति, आशंका, आपसी वैमनस्य और असंतोष का जो वातावरण दिखता है उसका एक मात्र कारण है मानवीय दुर्बूद्धि का बढ़ जाना और उसका दुष्प्रवृतियों की ओर मुड़ जाना। 

हमें वास्तविकता समझनी चाहिए और जनमानस में विवेकशीलता एवं उत्कृष्ट आदर्शवादिता का बीजारोपण करने के लिए प्रबल प्रयास करना चाहिए। अपने बच्चों को सुसंस्कृत बनाने का प्रयत्न करना चाहिए, हमे सदैव प्रयत्न करना चाहिए कि वो सन्मार्ग पर चले, सद् विचार उनमें भरी होनी चाहिए। राजनैतिक क्रान्ति के बाद अब सबसे बड़ी और पहली आवश्यकता विचार क्रांति की है। उसके बिना प्रगति के सारे प्रयत्न दिवा स्वप्न मात्र बनकर रह जायेंगे।
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©Surjeet kumar #Holi