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बिक रहा है पानी पवन बिक न जाए... बिक गयी है धरती ग

बिक रहा है पानी पवन बिक न जाए...
बिक गयी है धरती गगन बिक न जाए
चाँद पर भी बिकने लगी है जमी...
डर है की सूरज की तपन बिक न जाए 
हर जगह बिकने लगी है स्वार्थ नीति
डर है की कही शर्म बिक न जाए...
देकर दहॆज ख़रीदा गया है अब दुल्हे को 
कही उसी के हाथो दुल्हन बिक न जाए 
हर काम की रिश्वत ले रहे अब ये नेता...
कही इन्ही के हाथो वतन बिक न जाए 
सरे आम बिकने लगे अब तो सांसद...
डर है की कही सांसद भवन बिक न जाए 
आदमी मरा तो भी आँखें खुली हुई है...
डरता है मुर्दा कहीं कफ़न बिक न जाए !
 
जय भीम नमो बुद्धाय साथियों Jai Bhim Aman
बिक रहा है पानी पवन बिक न जाए...
बिक गयी है धरती गगन बिक न जाए
चाँद पर भी बिकने लगी है जमी...
डर है की सूरज की तपन बिक न जाए 
हर जगह बिकने लगी है स्वार्थ नीति
डर है की कही शर्म बिक न जाए...
देकर दहॆज ख़रीदा गया है अब दुल्हे को 
कही उसी के हाथो दुल्हन बिक न जाए 
हर काम की रिश्वत ले रहे अब ये नेता...
कही इन्ही के हाथो वतन बिक न जाए 
सरे आम बिकने लगे अब तो सांसद...
डर है की कही सांसद भवन बिक न जाए 
आदमी मरा तो भी आँखें खुली हुई है...
डरता है मुर्दा कहीं कफ़न बिक न जाए !
 
जय भीम नमो बुद्धाय साथियों Jai Bhim Aman