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शब होते ही आँखों में उतर आई होती ना दर्द की इस क़दर

शब होते ही आँखों में उतर आई होती
ना दर्द की इस क़दर गहराई होती

वो एक ग़लती ना की होती तो आलम होता
वो बगल में होती उनकी अंगड़ाई होती

इन बेज़ुबां इशारों की सोहबत ने बिगाड़ा हमें
ना हमने देखा होता ना वो शरमाई होती

वो दूर होती तो पैरहन-ए-दिल कटा फटा
अगर वो पास होती तो तुरपाई होती

वो अगर पढ़ती तेरी आयतें क़ुरान की
हर किसी के लबों से तब वाह वाही होती ख़्वाब
Mohit Mudita Dwivedi Adàrsh Ojâswì Bájpái Abdul Wase
शब होते ही आँखों में उतर आई होती
ना दर्द की इस क़दर गहराई होती

वो एक ग़लती ना की होती तो आलम होता
वो बगल में होती उनकी अंगड़ाई होती

इन बेज़ुबां इशारों की सोहबत ने बिगाड़ा हमें
ना हमने देखा होता ना वो शरमाई होती

वो दूर होती तो पैरहन-ए-दिल कटा फटा
अगर वो पास होती तो तुरपाई होती

वो अगर पढ़ती तेरी आयतें क़ुरान की
हर किसी के लबों से तब वाह वाही होती ख़्वाब
Mohit Mudita Dwivedi Adàrsh Ojâswì Bájpái Abdul Wase