शब होते ही आँखों में उतर आई होती ना दर्द की इस क़दर गहराई होती वो एक ग़लती ना की होती तो आलम होता वो बगल में होती उनकी अंगड़ाई होती इन बेज़ुबां इशारों की सोहबत ने बिगाड़ा हमें ना हमने देखा होता ना वो शरमाई होती वो दूर होती तो पैरहन-ए-दिल कटा फटा अगर वो पास होती तो तुरपाई होती वो अगर पढ़ती तेरी आयतें क़ुरान की हर किसी के लबों से तब वाह वाही होती ख़्वाब Adàrsh Ojâswì Bájpái