दिसंबर की वो रात और रुपहले जज्बात वो आंखो का आंखो से इस कदर टकराना वो खुले जुल्फ रेशम से लहराते वो होठ गुलाबी पंखुड़ियों से कपकपाते वो पलकों को झुका कर पलकें उठाना वो टकटकी मेरी देख उसका सिमट जाना रोकता खुद को कैसे उसकी आदाओ ने कतल कर डाला था शराबी नहीं था मै वो तो उसकी मदमस्त नयनों का प्याला था। #december की वो रात#day 18#just a thought