वजूद बाकी है अब भी कहीं,तेरे इश्क का शायद अब भी हर सुरूआत-ए-सुबह तेरे गम से होती है अहसास अब भी घुला-घुला सा है तेरा चाँदनी मे कहीं ये सर्द मौसम,ये हवा,ये रात कहां मुझे सोने देती है ख्वाबों पर है बाकी पहरा अब भी,कुछ इस तरह 'गुलशन' कोई और ख्वाब मुकम्मल,कहां होने देती है कुछ तो बाकी है