ख़ामोश मैं खामोश हो के सहती रही । वो ज़ुल्म पे ज़ुल्म करता रहा । बचपन से सिखती थी घर में, आदत वही थी चुप रहने की । वो कुछ न कुछ बोलता रहा । मैं खामोश हो के सहती रही । थोड़ी सी क्या आवाज़ उठाई ! कुछ तो बदचलन बोल दिया ! घर वालों ने बेशर्म कह दिया । पर क्यों की थी आवाज बुलंद, ये पुरुष प्रधान देश मेरी कहाँ सुनी । अंत मे अपनी ही गलती समझी । मैं खामोश हो के सहती रही । Ram N Mandal Main khamosh ho ke sahati rhi. Vo zulm pe zulm karta rha. Bachapan se sikhati thi ghar me. Aadat vahi thi chup rahne ki. Vo kuchh n kuchh bolta rha. Main khamosh ho ke sahati rhi. Thodi si kya avaj uthaee.