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बेवजह हक वो अपना जताने लगे हैं। खयालों में आकर वो

बेवजह हक वो अपना जताने लगे हैं।
खयालों  में आकर वो  सताने लगे हैं।

मैंने पूछा खामोशी क्यों है अब तलक?
बातों- बातों में वो नजरें चुराने लगे हैं।

ना लफ्जों को फिक्र है ना जुबां साथ दे,
 फिर भी इशारों से हमको बताने लगे हैं।

दो चार उनसे मुलाकातें क्या हुई हमारी?
 वो मोहब्बत में हमें अपना बनाने लगे हैं।

  ना हाले दिल पूछा ना इश्क मुकम्मल हुआ,
फिर भी बातों -बातों हमें आजमाने लगे हैं।

---राजेश कुमार
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-24/05/2023

©Rajesh Kumar
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