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एक दिन सहसा सूरज निकला अरेक्षितिज पर नहीं नगर के

एक दिन सहसा 
सूरज निकला
अरेक्षितिज पर नहीं
नगर के चौकः
धूप बरसी 
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से ।
छायाएँ मानव -जन की दिशाहीन 
सब ओर पडी़ -वह सूरज 
नहीं उगा था पुरब में, वह 
बरसा सहसा एक वृक्ष की हत्या
एक दिन सहसा 
सूरज निकला
अरेक्षितिज पर नहीं
नगर के चौकः
धूप बरसी 
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से ।
छायाएँ मानव -जन की दिशाहीन 
सब ओर पडी़ -वह सूरज 
नहीं उगा था पुरब में, वह 
बरसा सहसा एक वृक्ष की हत्या