एक दिन सहसा सूरज निकला अरेक्षितिज पर नहीं नगर के चौकः धूप बरसी पर अन्तरिक्ष से नहीं, फटी मिट्टी से । छायाएँ मानव -जन की दिशाहीन सब ओर पडी़ -वह सूरज नहीं उगा था पुरब में, वह बरसा सहसा एक वृक्ष की हत्या