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छल का महिषासुर सदा, करता अत्याचार | विनती है माँ श

छल का महिषासुर सदा, करता अत्याचार |
विनती है माँ शूल से, शीघ्र उसे दो मार ||

©कवि प्रभात  कविता कोश
छल का महिषासुर सदा, करता अत्याचार |
विनती है माँ शूल से, शीघ्र उसे दो मार ||

©कवि प्रभात  कविता कोश