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रूप की रानी ज़रा सुन,कर रही क्यूंँ यूंँ गुमां तू।

रूप की रानी ज़रा सुन,कर रही क्यूंँ यूंँ गुमां तू।
चांदनी है चार दिन की, सुन अँधेरी रात है  फिर। प्रिय लेखक/लेखिका, 
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