रचना नंबर – 3 छायावादी कविता शीर्षक –“परिमल से सन्ध्या– सुन्दरी” सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” “दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है” चारों ओर डूबते सूरज की लाली से बन सन्ध्या सुन्दरी धरती पर बिखर रही ढूंँढ़ने वो आ रही अम्बर से धीरे धीरे शांत चुप रह कर अपने साँझ प्रेमी को गोधूली बेला लिए नदी सागर के वक्षस्थल पर बन अलसाई कली धीरे धीरे वो मुस्कुरा कर छेड़े सांँझ संग मृदुल राग उठते मन जल तरंग को चारहुँ ओर शांत पड़े हैं नीर, समीर, क्षितिज और अम्बर देख इस अप्रतिम सन्ध्या सुन्दरी को देख आती तिमिर को ख़ुद को कर लीन सन्ध्या सुन्दरी बन प्रेयसी छोड़ जा रही विरह राग “आप निकल पड़ता तब एक विहाग”।। #rzछायावाद #rzहिंदीकाव्यसम्मेलन #restzone #collabwithrestzone #yqdidi #similethougths #rzhindi #yqrestzone