दुश्मन बन बैठे है मानव अब किसी से किसी की ना दोस्ती है।। गांव- शहर, नुक्कड़- नुक्कड़ पर बस मक्कारों की बस्ती है।। जीवन को कैसे कह दें है प्यारा यह भी अब टूटी बिखरी - सी कश्ती है।। मुफ़्त में अब यह बिक जाती है जैसे रद्दी कागज़ - सी सस्ती है।। भाई - बहन में जो प्रेम था पहले अब वैसी कोई ना मस्ती है।। दौलत को उपर रक्खा सबने शायद दूजा न कोई अब हस्ती है।। अंजली श्रीवास्तव