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​तकलीफ कागज़ पर मेरी बिकती रही​ ​मैं बैचैन था रातभर

​तकलीफ कागज़ पर मेरी बिकती रही​
​मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा !​

​छू रहे थे सब बुलंदियाँ आसमान की​
​मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा!!​

​दरख़्त होता तो, कब का टूट गया होता​
​मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा !!​

​बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से​
​रंग मेरा भी निखरा पर, मैं मेहँदी की तरह पिसता रहा!!​

​जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर​
​मैं समन्दर से राज गहराई के सीखता रहा!!​ ​तकलीफ कागज़ पर मेरी बिकती रही​
​मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा !​

​छू रहे थे सब बुलंदियाँ आसमान की​
​मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा!!​

​दरख़्त होता तो, कब का टूट गया होता​
​मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा !!​
​तकलीफ कागज़ पर मेरी बिकती रही​
​मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा !​

​छू रहे थे सब बुलंदियाँ आसमान की​
​मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा!!​

​दरख़्त होता तो, कब का टूट गया होता​
​मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा !!​

​बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से​
​रंग मेरा भी निखरा पर, मैं मेहँदी की तरह पिसता रहा!!​

​जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर​
​मैं समन्दर से राज गहराई के सीखता रहा!!​ ​तकलीफ कागज़ पर मेरी बिकती रही​
​मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा !​

​छू रहे थे सब बुलंदियाँ आसमान की​
​मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा!!​

​दरख़्त होता तो, कब का टूट गया होता​
​मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा !!​