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वेदना ----- संबंधों के बीच कहाँ अब वो भाव समर

वेदना
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संबंधों  के  बीच  कहाँ अब  वो भाव  समर्पण  है।
स्पंदित हो रहा  ह्रदय  श्रांत क्लांत  मेरा  मन  है।।

रहे नहीं वो जो प्रेम की संजीवनी कुछ बाँट सके।
रहा विनम्र न पुत्र आज जिसको थोड़ी डाँट सके।।
अंतर्मन की पीड़ा के कुछ  शाखों  को  छांँट  सके।

वेदना ----- संबंधों के बीच कहाँ अब वो भाव समर्पण है। स्पंदित हो रहा ह्रदय श्रांत क्लांत मेरा मन है।। रहे नहीं वो जो प्रेम की संजीवनी कुछ बाँट सके। रहा विनम्र न पुत्र आज जिसको थोड़ी डाँट सके।। अंतर्मन की पीड़ा के कुछ शाखों को छांँट सके।

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