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जो जल का है जो थल का है जो गगन भूमि सरिता का है ज

जो जल का है जो थल का है 
जो गगन भूमि सरिता का है
जो शशि-कांत की ज्योत्स्ना 
जो सूर्य प्रभा ललिता का है..
जो प्रलय सिंधु की गोद हिलोरे 
हिमगिर चढ़ने वाला है...
जो सात सृष्टि का कथाकार 
प्रत्यक्षी दर्शन वाला है
कभी निराकार-साकार धर्म की
ध्वजा बचाने वाला है....
 जिन अंग-अंग में भस्म रमी
अरु अंग व्याघ्र की छाला है
जो अर्णव के अभिमान का विष
निजकण्ठ में धरने वाला है....
जो अग्नितपन की तापस्ता
ब्रह्माण्ड में व्याप्त शिवाला है...
मैं उसी शास्वत की वंशज जो
अविचल रहने वाला है...अर्चना'अनुपमक्रान्ति'

©Archana pandey मैं इसी शास्वत की वंशज-3
जो जल का है जो थल का है 
जो गगन भूमि सरिता का है
जो शशि-कांत की ज्योत्स्ना 
जो सूर्य प्रभा ललिता का है..
जो प्रलय सिंधु की गोद हिलोरे 
हिमगिर चढ़ने वाला है...
जो सात सृष्टि का कथाकार 
प्रत्यक्षी दर्शन वाला है
कभी निराकार-साकार धर्म की
ध्वजा बचाने वाला है....
 जिन अंग-अंग में भस्म रमी
अरु अंग व्याघ्र की छाला है
जो अर्णव के अभिमान का विष
निजकण्ठ में धरने वाला है....
जो अग्नितपन की तापस्ता
ब्रह्माण्ड में व्याप्त शिवाला है...
मैं उसी शास्वत की वंशज जो
अविचल रहने वाला है...अर्चना'अनुपमक्रान्ति'

©Archana pandey मैं इसी शास्वत की वंशज-3