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सृष्टि मृत घोषित कर दे हमें, हम जीवित कहाँ? मृत-पा

सृष्टि मृत घोषित कर दे हमें,
हम जीवित कहाँ? मृत-पाय हैं।

लज्जित हूँ मैं शब्दों की मर्यादा पे,
 आत्मा को भी हम लाज़ की चौखट पे धर आये हैं।

कितनी आंच है, कितनी है आत्मवंचना
विधाता स्तवद्ध खड़ा है क्या सच ही मानुष उसने बनाये हैं।
सृष्टि मृत घोषित कर दे हमें,
हम जीवित कहाँ? मृत-पाय हैं।

लज्जित हूँ मैं शब्दों की मर्यादा पे,
 आत्मा को भी हम लाज़ की चौखट पे धर आये हैं।

कितनी आंच है, कितनी है आत्मवंचना
विधाता स्तवद्ध खड़ा है क्या सच ही मानुष उसने बनाये हैं।