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इश्क़ की गालियों में अपना भी ठिकाना रहा कोई, ये बात

इश्क़ की गालियों में अपना भी ठिकाना रहा कोई,
ये बात और है वफ़ा से अपना बैर पुराना रहा कोई।

रूह के अज़ाब में घिरकर एक उम्र बिताई हमनें,
टूटता रहा हर पल ना निकलनें का कोई रास्ता रहा कोई।

न जाने किस सुबह की उम्मीद थी दिल को,
कि वस्ल की ख़ातिर रात भर शमा बनकर जलता रहा कोई।

जब इश्क़ के बाज़ार में लगीं अरमानों की बोली,
महफ़िल में मैं ही ख़ामोश था हर चेहरा ख़रीददार रहा कोई।



 (अज़ाब- संताप, तीव्र पीड़ा)
📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫Collab with रचना का सार...📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को  प्रतियोगिता:-22 में स्वागत करता है..🙏🙏
*आप सभी 8 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
इश्क़ की गालियों में अपना भी ठिकाना रहा कोई,
ये बात और है वफ़ा से अपना बैर पुराना रहा कोई।

रूह के अज़ाब में घिरकर एक उम्र बिताई हमनें,
टूटता रहा हर पल ना निकलनें का कोई रास्ता रहा कोई।

न जाने किस सुबह की उम्मीद थी दिल को,
कि वस्ल की ख़ातिर रात भर शमा बनकर जलता रहा कोई।

जब इश्क़ के बाज़ार में लगीं अरमानों की बोली,
महफ़िल में मैं ही ख़ामोश था हर चेहरा ख़रीददार रहा कोई।



 (अज़ाब- संताप, तीव्र पीड़ा)
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