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मैं ,वो और मेरा शहर "वो मेरे कंधे पर सिर रख अक्सर

मैं ,वो और मेरा शहर
"वो मेरे कंधे पर सिर रख अक्सर पूछती थी कि मैं तुम्हारे शहर सी हूँ तुम अक्सर ये क्यों बोलते हो? " और मैं उसकी हथेलियों में अपनी हथेलियों को रखकर बोलता कि गलत कहाँ कहता हूँ मैं, मेरे शहर सी ही तो हो तुम, तो वो मुस्करा कर पूछती वो कैसे? 
मैं उससे कहता, जिस तरह मैं अपने शहर की हर गली और नुक्कड़ को जानता हूँ उसी तरह मैं, तुझे और तेरे अंदर की भुक्कड़ को भी जानता हूँ, जब भी मैं अपने शहर के करीब होता हूँ तो मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और सुकूँ मिलता है यही मुस्कान और सुकूँ मुझे तेरे करीब आने पर मिलता है, जिस तरह मै  अपने शहर के नाम से जाना जाता हूँ उसी तरह अपने दोस्तों के बीच भी तेरे नाम से  जाना जाता हूँ वैसे तो उम्र के साथ हमारे दरमियाँ दूरियाँ भी बड जाती हैं और देख अब मुझे दूर भी तो रहना पड़ता मुझे मेरे शहर से ,बिल्कुल तेरी तरह, 
अब तू ही बता तू मेरे शहर सी है या नहीं, वो मुस्करा कर बोली पागल मैं तेरे शहर सी नही तेरा शहर ही हूँ और खबरदार जो तूने मुझे कभी भुलाया,
. #जलज राठौर मैं ,वो और मेरा शहर
"वो मेरे कंधे पर सिर रख अक्सर पूछती थी कि मैं तुम्हारे शहर सी हूँ तुम अक्सर ये क्यों बोलते हो? " और मैं उसकी हथेलियों में अपनी हथेलियों को रखकर बोलता कि गलत कहाँ कहता हूँ मैं, मेरे शहर सी ही तो हो तुम, तो वो मुस्करा कर पूछती वो कैसे? 
मैं उससे कहता, जिस तरह मैं अपने शहर की हर गली और नुक्कड़ को जानता हूँ उसी तरह मैं, तुझे और तेरे अंदर की भुक्कड़ को भी जानता हूँ, जब भी मैं अपने शहर के करीब होता हूँ तो मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और सुकूँ मिलता है यही मुस्कान और सुकूँ मुझे तेरे करीब आने पर मिलता है, जिस तरह मै  अपने शहर के नाम से जाना जाता हूँ उसी तरह अपने दोस्तों के बीच भी तेरे नाम से  जाना जाता हूँ वैसे तो उम्र के साथ हमारे दरमियाँ दूरियाँ भी बड जाती हैं और देख अब मुझे दूर भी तो रहना पड़ता मुझे मेरे शहर से ,बिल्कुल तेरी तरह, 
अब तू ही बता तू मेरे शहर सी है या नहीं, वो मुस्करा कर बोली पागल मैं तेरे शहर सी नही तेरा शहर ही हूँ और खबरदार जो तूने मुझे कभी भुलाया,
.... #जलज राठौर
मैं ,वो और मेरा शहर
"वो मेरे कंधे पर सिर रख अक्सर पूछती थी कि मैं तुम्हारे शहर सी हूँ तुम अक्सर ये क्यों बोलते हो? " और मैं उसकी हथेलियों में अपनी हथेलियों को रखकर बोलता कि गलत कहाँ कहता हूँ मैं, मेरे शहर सी ही तो हो तुम, तो वो मुस्करा कर पूछती वो कैसे? 
मैं उससे कहता, जिस तरह मैं अपने शहर की हर गली और नुक्कड़ को जानता हूँ उसी तरह मैं, तुझे और तेरे अंदर की भुक्कड़ को भी जानता हूँ, जब भी मैं अपने शहर के करीब होता हूँ तो मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और सुकूँ मिलता है यही मुस्कान और सुकूँ मुझे तेरे करीब आने पर मिलता है, जिस तरह मै  अपने शहर के नाम से जाना जाता हूँ उसी तरह अपने दोस्तों के बीच भी तेरे नाम से  जाना जाता हूँ वैसे तो उम्र के साथ हमारे दरमियाँ दूरियाँ भी बड जाती हैं और देख अब मुझे दूर भी तो रहना पड़ता मुझे मेरे शहर से ,बिल्कुल तेरी तरह, 
अब तू ही बता तू मेरे शहर सी है या नहीं, वो मुस्करा कर बोली पागल मैं तेरे शहर सी नही तेरा शहर ही हूँ और खबरदार जो तूने मुझे कभी भुलाया,
. #जलज राठौर मैं ,वो और मेरा शहर
"वो मेरे कंधे पर सिर रख अक्सर पूछती थी कि मैं तुम्हारे शहर सी हूँ तुम अक्सर ये क्यों बोलते हो? " और मैं उसकी हथेलियों में अपनी हथेलियों को रखकर बोलता कि गलत कहाँ कहता हूँ मैं, मेरे शहर सी ही तो हो तुम, तो वो मुस्करा कर पूछती वो कैसे? 
मैं उससे कहता, जिस तरह मैं अपने शहर की हर गली और नुक्कड़ को जानता हूँ उसी तरह मैं, तुझे और तेरे अंदर की भुक्कड़ को भी जानता हूँ, जब भी मैं अपने शहर के करीब होता हूँ तो मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और सुकूँ मिलता है यही मुस्कान और सुकूँ मुझे तेरे करीब आने पर मिलता है, जिस तरह मै  अपने शहर के नाम से जाना जाता हूँ उसी तरह अपने दोस्तों के बीच भी तेरे नाम से  जाना जाता हूँ वैसे तो उम्र के साथ हमारे दरमियाँ दूरियाँ भी बड जाती हैं और देख अब मुझे दूर भी तो रहना पड़ता मुझे मेरे शहर से ,बिल्कुल तेरी तरह, 
अब तू ही बता तू मेरे शहर सी है या नहीं, वो मुस्करा कर बोली पागल मैं तेरे शहर सी नही तेरा शहर ही हूँ और खबरदार जो तूने मुझे कभी भुलाया,
.... #जलज राठौर