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रोज छोटे-छोटे किस्सों की बारात बुनकर, हर शाम तुझे

रोज छोटे-छोटे किस्सों की बारात बुनकर,
हर शाम तुझे सुनाने की चाहत थी।
रोज पॉकेट से थोड़े पैसे जोड़कर,
 साथ में आइसक्रीम खाने की चाहत थी।। 
कभी उदास हो जाता जिंदगी से तो, 
तेरी मुस्कान से मुस्कुराने की चाहत थी। 
रोज दौड़ता था बेसब्री से तेरी ओर,
बेसब्र दिल में तुझे लाने की चाहत थी।
रोज रूठ जाती तुम मुझसे बच्चे की तरह,
बच्चे सा तोतलाकर मनाने की चाहत थी।
 रोज थक जाता था हसीन ख्वाब बुनकर,
कभी तेरी गोद में सो जाने की चाहत थी। 
अपनी पलकों से नन्हां सा बाल लेकर, 
तेरी सलामती की दुआ में उड़ाने की चाहत थी।
 हर रोज हार जीत का एक खेल खेलते,
 पर जीत कर भी हार जाने की चाहत थी।
 तेरे होठों पर रह जाती कुछ पानी की बूंदे ,
शरारती दिल में होठों से हटाने की चाहत थी।
 रोज छोटे-छोटे किस्सों की बारात बुनकर, 
हर शाम तुझे सुनाने की चाहत थी।
      @ निखिल की कलम से।
रोज छोटे-छोटे किस्सों की बारात बुनकर,
हर शाम तुझे सुनाने की चाहत थी।
रोज पॉकेट से थोड़े पैसे जोड़कर,
 साथ में आइसक्रीम खाने की चाहत थी।। 
कभी उदास हो जाता जिंदगी से तो, 
तेरी मुस्कान से मुस्कुराने की चाहत थी। 
रोज दौड़ता था बेसब्री से तेरी ओर,
बेसब्र दिल में तुझे लाने की चाहत थी।
रोज रूठ जाती तुम मुझसे बच्चे की तरह,
बच्चे सा तोतलाकर मनाने की चाहत थी।
 रोज थक जाता था हसीन ख्वाब बुनकर,
कभी तेरी गोद में सो जाने की चाहत थी। 
अपनी पलकों से नन्हां सा बाल लेकर, 
तेरी सलामती की दुआ में उड़ाने की चाहत थी।
 हर रोज हार जीत का एक खेल खेलते,
 पर जीत कर भी हार जाने की चाहत थी।
 तेरे होठों पर रह जाती कुछ पानी की बूंदे ,
शरारती दिल में होठों से हटाने की चाहत थी।
 रोज छोटे-छोटे किस्सों की बारात बुनकर, 
हर शाम तुझे सुनाने की चाहत थी।
      @ निखिल की कलम से।
nikhilkumar6445

Nikhil Kumar

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